Flesh eating bacteria in Japan: जानलेवा Toxic shock syndrome का कहर, क्या हैं STSS ? जाने क्या हैं लक्षण और इलाज़।

Flesh eating bacteria

Flesh eating bacteria in Japan, Toxic shock syndrome का कहर:

जापान में इस वक्त एक ख़ास और खतरनाक बैक्टीरिया ने कहर बरपाया हुआ हैं। यह स्ट्रेप्टोकोकल प्रजाति का बैक्टीरिया हैं जिसे Flesh eating bacteria भी कहा जाता हैं। यह बैक्टीरिआ responsible हैं एक ख़ास बीमारी का जिसे Toxic shock syndrome कहा जाता हैं। Toxic shock syndrome जापान में तेजी से फ़ैल रहा हैं जिसके अभी तक 977 मामले सामने आ चुके हैं। चिंता की बात यह हैं की Toxic shock syndrome में इन्फेक्टेड मरीज के मरने की दर 30 प्रतिशत है, जो कि इसे और घातक बनाता हैं।

Flesh eating bacteria क्या हैं ?

यह स्ट्रेप्टोकोकल समूह का एक Bacteria हैं जो नोर्मली सिर्फ गले में खराश या हलके फुल्के बुखार का कारण होता हैं, लेकिन कुछ cases में यह tissues के अंदर तक जाकर ऑर्गन्स को खा जाता हैं या यह कहे की इन्फेक्ट कर देता हैं जिससे ऑर्गन्स काम करना बंद कर देते हैं। मूलतः ग्रुप A स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिआ की वजह से ही Toxic shock syndrome किसी को होता हैं। जब यह बैक्टीरिआ रक्त के सहारे ऊतकों तक पहुँचता हैं तो एक तरह का टोक्सिन छोड़ता हैं जो किसी भी स्वस्थ इंसान के अंगो को अंदर से खराब कर देता हैं, इसीलिए इसे Flesh eating bacteria के नाम से भी जानते हैं।

Toxic shock syndrome बीमारी के लक्षण:

शुरुआत में किसी व्यक्ति को बुखार और शरीर में कम्पन्न महसूस होगी, इसके अलावा घबराहट और उलटी की भी शिकायत लोगो में देखने को मिलती हैं। ये लक्षण आने के 24 से 48 घंटो के अंदर मरीज को low blood pressure की शिकायत होगी, इसके अलावा मरीज की हृदयगति भी बढ़ जाएगी और धीरे धीरे सभी ऑर्गन्स काम करना बंद कर देंगे।

Toxic shock syndrome के क्या हैं बचाव:

Toxic shock syndrome एक बहुत ही rare मगर जानलेवा बीमारी हैं। इसमें Bacteria मरीज के अंदर ऑर्गन्स को नुक्सान पहुँचाता हैं जिससे शरीर के कुछ ऑर्गन्स काम करना बंद कर देते हैं ऐसे में इसका एकमात्र उपाय उस संक्रमित ऑर्गन को निकालना ही बचता हैं। इसमें भी औसतानुसार अगर 10 मरीज हैं तो उसमे 3 लोगो की मृत्यु हो जाती हैं। एक बार बीमारी हो जाये तो इसमें बचने का प्रतिशत सिर्फ 70 हैं।

किसे हो सकती हैं यह बीमारी:

यूँ तो Toxic shock syndrome किसी को भी हो सकता हैं मगर फिर भी कुछ फैक्टर्स हैं जहा यह तेजी से फैलता हैं, जैसे-
Age- ज्यादातर यह बुजुर्गो में देखा गया हैं जिनकी उम्र 65 या इससे ऊपर रहती हैं।
Injuries or Infection – वो लोग जिनकी हाल ही में कोई सर्जरी हुई हो या इंजरी हुई हो जिससे उनकी त्वचा में दरार आयी हो। हालांकि डॉक्टर्स और साइंटिस्ट्स अभी तक 50 प्रतिशत केसेस में पता नहीं लगा पाए हैं की किस तरह ये Bacteria बॉडी में एंटर करता हैं।
डायबिटिक लोग – वो लोग जो डायबिटिक हैं वो सबसे ज्यादा रिस्क पर रहते हैं Toxic shock syndrome होने के।

Testing and diagnosis:

अभी तक STSS(Streptococcal toxic shock syndrome) को जाँचने के लिए कोई टेस्ट उपलब्ध नहीं हैं मगर फिर भी डॉक्टर्स ग्रुप A स्ट्रेप्टो बैक्टीरिया infection को जाँचने के लिए टेस्ट करवा सकते हैं, इसके अलावा ऑर्गन प्रॉपर वर्किंग में हैं या नहीं इसके लिए टेस्ट्स करवा सकते हैं। यह टेस्ट्स तभी suggest किया जाता हैं जब मरीज के कम से कम दो या इससे ज्यादा ऑर्गन्स काम ना कर रहे हो।

Organs affected in Toxic shock syndrome are –
Blood
Kidney
Liver
Lung
Skin
Soft tissue (tissue beneath the skin and muscles).

Toxic shock syndrome का इलाज:

मरीज जिन्हे Toxic shock syndrome हो उन्हें Hospitalised कराना जरुरी हो जाता हैं ताकि उनकी देखभाल अच्छे से हो। समय समय पर Fluids भी चढ़ाये जाते हैं जिससे की मरीज शॉक और इन्फेक्शन से उबर पाए। कई बार ऑर्गन्स में इन्फेक्शन बढ़ जाने पर उन्हें निकालना भी पढ़ जाता हैं।

 

 

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