दैत्यपुरा के दैत्य : आज़ादी से आबादी तक।

भूत।-

बात हैं आज से कुछ 600-700 साल पहले की। एक गाँव था “दैत्यपुरा”। जैसा की नाम से जाहिर हैं इस गाँव पर कुछ दैत्यों का प्रकोप था। रात के अँधेरे में ये दैत्य पुरे गाँव में घूमते थे, और जो भी कोई उस वक्त उन्हें घर के बाहर अकेला दिखता उसे अपना शिकार बना लेते थे।

दैत्य मायावी थे तो सिर्फ रात के अन्धकार में ही निकलते थे। इसके साथ ही इन दैत्यों को एक ख़ास वरदान प्राप्त था कि इनकी मृत्यु तभी हो सकती हैं जब ये कोई इंसानी परछाई देख ले। यह बात गाँव वालो को पता नहीं थी जिस वजह से गाँव के कई लोग इन दैत्यों को शिकार बनते गए और धीरे धीरे गाँव से लोगो का पलायन होने लगा।

यह सब देखकर गाँव के ही कुछ दोस्तों ने फैसला किया कि वह आज रात को एक साथ बाहर निकलेंगे और उन दैत्यों का सामना करेंगे। रात हुई और 4 दोस्त साथ में गाँव में मशाल लेकर निकल पड़े। हर रात की तरह दैत्य इस रात भी बाहर निकले मगर उन दैत्यों में से किसी को भी अंदेशा नहीं था कुछ लोग मशाल लेकर गाँव में घूम रहे हैं।

जैसे ही उनका सामना इन चारो दोस्तों से हुआ तो उन दैत्यों में से एक की नज़र मशाल की वजह से बन रही परछाई पर गयी और वह उसी वक्त हवा में विलीन हो गया, और बाकी दैत्य तुरंत वहा से गायब हो गए। यह देखकर चारो दोस्तों को कुछ समझ नहीं आया क्यूंकि वह जानते नहीं थे की दैत्यों को क्या वरदान प्राप्त हैं।

अगले दिन पुरे गाँव में यह बात फ़ैल गयी की दैत्य रोशनी से डरते हैं। फिर क्या था अगली रात से जो कोई भी गाँव में घर से बाहर निकलता, अपने हाँथ में मशाल लेकर निकलता।
उस दिन के बाद से गाँव में कभी किसी की मृत्यु दैत्य के हांथो नहीं हुई। गाँव वाले कुछ भी माने मगर सत्य यह था की दैत्य को भय उस परछाई से था जो इंसान के साथ साथ चल रही थी।

वर्तमान।-

19 अगस्त 2024 को भारत में रक्षाबन्धन का त्यौहार मनाया जायेगा। यह सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक दिन हैं भाई और बहन के बीच के पवित्र प्यार का। वो प्यार जिसमे एक भाई वादा करता हैं कि परिस्थिति केसी भी हो, वह हमेशा अपनी बहन की रक्षा करेगा और एक परछाई की तरह हमेशा उसके साथ रहेगा। लेकिन ये परछाई सिर्फ हमारी खुद की बहनो तक ही क्यों सीमित रहती हैं।

ये परछाई वहा तक क्यों नहीं पहुँचती जहा इसकी ज़रूरत हो, जहा घना अँधेरा हो, उन काली परछाइयों में हमारी परछाई कहा खो जाती हैं।
अभी 4 दिन पहले ही हमने आज़ादी दिवस मनाया, पर क्या वाकई आप और मैं आज़ाद हैं।

सन 1947 से पहले हम अंग्रेजो के गुलाम थे। फिर 15 अगस्त 1947 को ऐलान होता हैं कि यह देश और इस देश के लोग अंग्रेजी हुकूमत से आज़ाद हैं। उस रात को 77 साल हो चुके हैं, देश आज़ाद हैं , पर क्या देश के सभी लोग आज़ाद हैं। क्या देश के कुछ लोग गुलाम नहीं हैं उस घृणित मानसिकता से जो उन्हें इंसान से जानवर बनाती हैं। उस सोच से जो उन्हें किसी के ऊपर ताकत और शक्ति प्रदर्शन के लिए बढ़ावा देती हैं।

रात के 12 बजे हो या दिन के 12, मेरे पास हक़ हैं की अगर देश वाकई आज़ाद हैं तो मैं भी आज़ादी से और बेख़ौफ़ घर से बाहर निकलू। क्यू कोई कहेगा कि गलती तुम्हारी हैं इतनी रात में जो निकली हो। वो क्यू निकला हैं इतनी रात को जो मेरा पीछा कर रहा हैं। क्या उसे आज़ादी मिली हैं बस, मुझे नहीं ?

क्या किसी के जीने का दायरा उसके जेंडर से पारिभाषित होना चाहिए। क्या उन दैत्यपुरा के दैत्यों से डरकर हम भी घर के अंदर सिमटकर रह जाए ? लेकिन फिर दैत्य आपके घर के अंदर ही हो तो, वक्त के साथ साथ दैत्यों का स्वरुप भी बदला हैं। वो आपके और मेरे बीच में हमारे जैसे ही बनकर रहते हैं, इंतजार करते हैं अन्धकार का, परछाई के जाने का।

2012 में जो हुआ वैसा ही कुछ 2024 में भी हुआ हैं। और इन 12 सालो के गैप में भी बहुत बार हुआ। कुछ सामने आये, कुछ नहीं। 2012 में जो प्रदर्शन हुए, आखिर उससे कुछ बदला क्यों नहीं। क्या 12 साल कम हैं उन लोगो की मानसिकता को बदलने में।

आखिर इतनी हिम्मत इन लोगो में आती कहा से हैं ?
शायद इन्हे पता हैं कि इतना कुछ करने के बाद भी 73% चांसेस हैं कि इन्हे कुछ न हो। जी हाँ, भारत में सिर्फ 27% रेप केसेस में ही सुनवाई पूरी हो पाती हैं। तो फिर कुछ भी क्यूँ बदलेगा।
ये 27% केस भी ज्यादातर वो हैं जहा केस ज्यादा हाईलाइट होता हैं। इससे पता चलता हैं की न्याय का रास्ता कितना लम्बा हैं। इसमें गलती आपकी और हमारी भी हैं। हमने 2012 के निर्भया केस से कुछ सीखा नहीं।

भविष्य।-

19 अगस्त 2024 को रक्षाबंधन हैं। आप हर साल अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं और अपने आप से एक प्रण लेते हैं कि आप उसकी हमेशा रक्षा करोगे और हर वक्त परछाई की तरह उसके साथ खड़े रहोगे । आप इस बार खुद से एक वादा करो कि आप सिर्फ अपनी बहन के लिए ही नहीं बल्कि हर उस लड़की के लिए एक परछाई बनोगे जिसे आप जानते हो या नहीं भी।
किसी और के भरोसे बैठोगे तो शायद 12 साल और हाँथ में मोमबत्ती लिए निकल जाएँ। दिन के उजाले में किसी की परछाई बनना आसान हैं, असली परीक्षा रात के अंधकार में परछाई बनने में हैं।
और ऐसा जरुरी नहीं की हर बार एक पुरुष ही किसी की परछाई बने। आप में से कोई भी, फिर चाहे वह किसी भी जेंडर से हो, किसी भी जेंडर के लिए एक परछाई का काम कर सकता हैं।
दैत्यपुरा के वो दैत्य कभी मरे नहीं। वो बस कुछ समय के लिए गायब हो गए, और इंतजार करने लगे कि कब फिर से अन्धकार होगा और कोई फिर से बिना मशाल के निकलेगा।
ये दैत्य अब आपके और मेरे बीच में ही हैं, और हमेशा इंतजार में रहते हैं उस परछाई के जाने के, जो आपकी और मेरी रक्षा करती हैं। इसलिए ज़रूरत हैं कि मैं आपकी और आप मेरी परछाई बने।

ये मत सोचिये की कोई मसीहा या हीरो आएगा और हमेशा के लिए सब ठीक कर देगा। ये कलियुग हैं, यहाँ दैत्य भी आप में हैं और देव भी। तो अपने अंदर के उस अच्छे हिस्से को जगा के रखो ताकि बार बार ये मोमबत्तिया न जलानी पढ़े।

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