बात हैं सन 1540 की, इंग्लैंड की डेवोन काउंटी में जनम होता हैं इंग्लैंड के एक महान खोजकर्ता का जिसका नाम था Francis Drake। इंग्लैंड के लिए फ्रांसिस एक नायक थे , जहाज़ के कप्तान थे और एक महान खोजकर्ता थे लेकिन पुर्तगाली और स्पेनिश लोगो के लिए यह एक लुटेरे थे, समुद्री लुटेरे।
फ्रांसिस ड्रेक की मौत 28 जनवरी 1596 को पनामा के एक छोटे से गाँव पोर्टेबेलो में होती हैं, यानी की ईस्ट इंडिया कंपनी के शुरू होने से ठीक 4 साल पहले। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इनका ईस्ट इंडिया कंपनी से कोई लेना देना नहीं हैं, सीधे तौर पर न सही लेकिन जाने अनजाने ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत होने के जिम्मेदार कही हद तक इनकी वो यात्राए हैं जो इन्होने अपने जीवनकाल में की। यह उस सोच के जिम्मेदार हैं जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत हुई। तो आइये शुरू करते हैं यह रोमांचकारी कहानी Sir Francis Drake की –
Early life of Sir Francis Drake:
जब Francis Drake सिर्फ 8 साल के थे तो इनके पिता एडमंड ड्रेक पर डकैती और हमले का मामला चल रहा होता हैं जो की बाद में सिद्ध भी हो जाता हैं और इनके पिता को इसमें आरोपी माना जाता हैं, जिसके बाद एडमंड अपने मूल काउंटी से फरार हो जाते हैं।
इसके बाद फ्रांसिस की देखभाल उनके रिश्तेदार, हॉकिन्स परिवार, के द्वारा हुई जो कि व्यापारियों और समुद्री डाकुओं के रूप में संयुक्त रूप से काम करते थे।
हॉकिंस परिवार जो हैं वह काफी टाइम से इस तरह के काम करता था जिसमे वह समुद्री डाकू बनकर पहले लूटपाट करते थे और जो भी लूट का सामान आता था फिर उसका व्यापार करते थे।
फ्रांसिस जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उसकी भी इस माहौल में रहते रहते लूटपाट और व्यापार में रूचि बढ़ने लगी। जब वह 18 का हुआ तो हॉकिंस के ही एक बेड़े में शामिल हो गया जिनका मुख्य काम था, एक ऐसे जहाज को ढूँढना जिसमे सवार होकर वह फ़्रांसिसी तटो को लूट सके या उस पर कब्ज़ा कर सके।
अफ़्रीकी व्यापार:
1560 की शुरुआत में जब फ्रांसिस महज 20 साल के थे उनकी रूचि अफ़्रीकी व्यापार में जागी। अब चूँकि हॉकिंस को भी अफ़्रीकी व्यापार में दिलचस्पी थी तो उन्होंने भी फ्रांसिस को मना नहीं किया और फिर कुछ ही समय में फ्रांसिस ने अफ़्रीकी व्यापार में कदम रखा।
दरअसल उस वक्त स्पेनिश लोगो का कैरेबियन बंदरगाहों पर कब्ज़ा था जिस वजह से कई कैरेबियन शहरों में स्पेनिश कॉलोनीज बनायीं गयी थी, जहा पर बंदरगाहों पर काम करवाने वाले स्पेनिश ऑफिसर्स रहा करते थे। इन स्पेनिश ऑफिसर्स को कई बार दास यानी गुलामो की जरुरत होती थी इनके अलग अलग तरह के कामो के लिए। इन गुलामो को पानी के रास्ते अलग अलग कैरेबियन शहरों से जहाजों में लाया जाता था।
फ्रांसिस को इस काम में बहुत इंटरेस्ट जागा। और आखिरकार 1568 में वह अपने खुद के एक शिप हॉकिंस वेंचर्स का मालिक बन गया।
वेस्ट इंडीज जाने की फ्रांसिस की जॉन हॉकिंस के साथ की गयी दूसरी यात्रा बहुत ही विनाशकारी सिद्ध हुई जब कुछ स्पेनिश लड़ाकों ने मेक्सिको के एक तट पर सभी अंग्रेजी घुसपैठियों पर हमला बोल दिया और लगभग सभी अंग्रेज मारे गए। फ्रांसिस वहा से किसी तरह बचते बचाते भाग निकले और वापिस इंग्लैंड पहुंच गए।
Francis Drake and Queen Elizabeth 1:
फ्रांसिस वापिस इंग्लैंड तो आ गए लेकिन उनके अंदर स्पेनिश लड़ाकों और उनके राजा फिलिप 2 के लिए बदले की कड़ी भावना भी आ गयी थी। इसके साथ ही फ्रांसिस का यह सफर आर्थिक रूप से बहुत नुकसान भी लेकर आया। यह नुकसान इतना बड़ा था की Queen Elizabeth 1 की नज़र फ्रांसिस पर पड़ी। गुलामो की खरीद फरोख्त के व्यापार में क़्वीन एलिज़ाबेथ की ख़ास रूचि रही थी।
1572 में रानी के आदेश पर फ्रांसिस अमेरिका के लिए रवाना होता हैं। उसके साथ 2 छोटे जहाज होते हैं जिसमे से एक का नाम था पाशा और दूसरे का स्वान। फ्रांसिस इस सफर में बहुत रोमांचित था क्यूंकि उसका लक्ष्य था पनामा के एक शहर Nombre de Dios पर कब्ज़ा करना। हालांकि वह एक बार फिर असफल होता हैं और इस हमले में घायल हो जाता हैं। फ्रांसिस और उसके कुछ साथी किसी तरह जान बचाकर भागते है और भागते हुए एक ट्रैन पर कब्ज़ा कर लेते हैं। फ्रांसिस भाग्यशाली था क्यूंकि इस ट्रैन में बहुत सारी मात्रा में चांदी होता हैं जिसे लूट कर वह ख़ुशी के मारे फुला नहीं समाता।
अपने इस सफर के दौरान ही एक बड़ी चोटी पर खड़े होकर वह पहली बार प्रशांत महासागर को देखता हैं और कहता हैं की भला हो उस ईश्वर का जिसने मुझे यह दिन दिखाया। चूँकि उस समय स्पेनिश जहाजों के अलावा किसी दूसरे जहाज का प्रशांत महासागर में होना वर्जित था, फ्रांसिस अपनी इस उपलब्धि से गौरवान्वित महसूस कर रहा था।
फ्रांसिस वापिस इंग्लैंड लौटा, वह अमीर और प्रसिद्द हो चुका था। लेकिन ठीक इसी वक्त स्पेन और इंग्लैंड के बीच युद्धविराम लग गया। यह देख कर फ्रांसिस को बुरा लगा और वह आयरलैंड के लिए तुरंत रवाना हो जाता हैं। कहा जाता हैं की आयरलैंड में 1575 में हुए भयंकर नरसन्हार में फ्रांसिस भी शामिल था।
लेकिन यह युद्धविराम ज्यादा समय नहीं चला और 1577 में क़्वीन एलिज़ाबेथ ने एक दल को फ्रांसिस ड्रेक के नेतृत्व में साउथ अमेरिका के आगे खोज के लिए भेजा जिसका मकसद था ऐसे ठिकाने ढूँढना जहा से यातायात संभव हो, और साथ ही कहा की वह स्पेन के राजा से बदला लेने को उत्सुक हैं। यह पहली बार था जब फ्रांसिस की मुलाक़ात सीधे तौर पर रानी एलिज़ाबेथ से हुई हो।
Francis Drake – एक महान खोजकर्ता:
दिसंबर 1577 को 5 छोटे जहाज़ों के साथ उन्होंने अपनी पहली खोजकर्ता के रूप में यात्रा प्रारम्भ की और बसंत 1578 तक वह ब्राजीलियन तट पर पहुंच गए थे। इन 5 छोटे जहाजों में उनका प्रमुख जहाज था पेलिकल, जिसे बाद में गोल्डन हिन्द का नाम दिया गया।
दक्षिण अमेरिका पहुंचने के बाद 21 अगस्त 1578 से फ्रांसिस ने मेगेलोन की यात्रा शुरू की जो कि 16 दिनों में पूरी हुई और इसके बाद वह एक बार फिर प्रशांत महासागर की और बढ़ चले। बीच महासागर में आंधी तूफ़ान के चलते उनके बाकी के जहाज उनसे अलग हो गए और वापिस इंग्लैंड लौट गए और सिर्फ फ्रांसिस का गोल्डन हिन्द ही स्पेन के तट तक पहुंच पाया।
चूँकि स्पेनवासी किसी अज्ञात हमले से अनजान थे क्यूंकि इतिहास में ऐसा कम ही हुआ था, इस बात का फायदा उठाकर फ्रांसिस ने आसपास के व्यापारिओं को लूटा, जिनके पास बहुत सारा चांदी, स्पेनिश सिक्के और भी बहुमूल्य सामान था।
इसके बाद फ्रांसिस कनाडा से 48 डिग्री उत्तर बड़े मगर अत्यधिक ठण्ड के कारण वापिस लौटे और दक्षिण की और सेन फ्रांसिस्को में अपना बसेरा डाला।फ्रांसिस ने अपने कब्जे में किये हुए देश का नाम न्यू एल्बियन रखा।
जुलाई 1579 में वह प्रशांत महासागर के पार पश्चिम की ओर रवाना हुए और 68 दिनों के बाद उन्हे द्वीपों की एक पंक्ति (संभवतः सुदूर पलाऊ समूह) दिखाई दिया। वहाँ से वह फिलीपींस गये, जहाँ फ्रांसिस ने मोलुकास जाने से पहले जहाज़ पर पानी भरा। वहाँ फ्रांसिस का एक स्थानीय सुल्तान(सुलतान बाबुल्लाह) ने बहुत अच्छी तरह से स्वागत किया और फिर उन्होंने वहा के मसाले ख़रीदे। इसके बाद फ्रांसिस ने हिन्द महासागर भी पार किया और केप ऑफ़ गुड की और प्रस्थान किया।
From Francis Drake to Sir Francis Drake:
26 सितम्बर 1580 को फ्रांसिस इंग्लैंड वापस लौटते हैं और साथ में खूब सारा चांदी और बहुमूल्य सामान भी और साथ ही मसाले। यह सब देख कर रानी एलिज़ाबेथ बहुत खुश हुई और उन्होंने Francis Drake को Knighthood के खिताब से नवाज़ा। फ्रांसिस ड्रेक ने इस यात्रा के दौरान स्पेनिश लोगो से इतना खजाना लूटा की जिससे इंग्लैंड के व्यापारिओं को 5000 प्रतिशत का मुनाफा हुआ। इसके बाद फ्रांसिस को Plymouth का मेयर बनाया गया और उसने अपना बहुत सारा वक्त वहा के मेयर रहने में बिताया।
Armada पर आक्रमण:
लेकिन अभी भी स्पेनिश लोगो से और उनके राजा फिलिप 2 से बदला लेने का जूनून फ्रांसिस के मन से ख़तम नहीं हुआ था। इसका मौका उन्हें एक बार और मिलता हैं सन 1588 में जब रानी एलिज़ाबेथ ने स्पेनिश जहाज अर्माडा पर आक्रमण और उसे ध्वस्त कर उसे लूटने के लिए फ्रांसिस ड्रेक को याद किया और लगभग 30 शिप्स के साथ भेजा गया। फ्रांसिस सफल रहे और उन्होंने स्पेनिश जहाजों से इतना खजाना लूटा जिससे वह पूरी दुनिया की यात्रा कर सकते थे।
इसी लूट के बाद था जब अंग्रेजो ने हिन्द महासागर और अरब सागर से होते हुए भारत की और जाने का मन बनाया। फ्रांसिस ड्रेक इससे पहले हिन्द महासागर पार कर चुके थे मगर भारत में प्रवेश नहीं कर पाए थे क्यूंकि भारत में उस वक्त पुर्तगालियों और स्पेनियों का एकाधिकार था।
फ्रांसिस की यात्रा में हिन्द महासागर से लाये मसालों की गुडवत्ता देख व्यापारियों को यकीन हो गया कि भारत और एशिया के बाकी देशो के मसाले सर्वोच्च किस्म के हैं। इसी बात को रखते हुए लन्दन के व्यापारियो ने रानी एलिज़ाबेथ से हिन्द महासागर में जाने की अनुमति मांगी जिसका उद्देश्य था भारत व आसपास के देशो से पुर्तगालियों और स्पेनिशो के एकाधिकार को ख़तम करना और अकेले व्यापार करना। रानी एलिज़ाबेथ इसकी अनुमति दे देती हैं और फिर 1591 में जेम्स लैंकेस्टर के नेतृत्व में अंग्रेजो की पहली भारत यात्रा शुरू होती हैं।